जब दोस्ती के आगे झुका ओलिंपिक, दो तुकड़ों में ओलिंपिक मेडल को काटकर बनाया ‘द फ्रेंडशिप मेडल’

ओलिंपिक खेलों की प्रतिस्पर्धा का स्तर दुनिया की बाकी प्रतियोगिताओं से कहीं ऊपर है. खिलाड़ी एक-दूसरे को पीछे छोड़ने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार होते हैं. ऐसे में कई बार हार-जीत का फैसला बेहद करीबी होता है, तो कई बार मुकाबला टाई भी हो जाता है. टाई की स्थिति में खिलाड़ियों के बीच मेडल पर अपना हक जमाने को लेकर तनावपूर्ण माहौल बन जाता है. लेकिन, कई मौकों पर खिलाड़ी खेल से ऊपर उठकर दोस्ती की मिसालें कायम कर देते हैं. यह कहानी भी जापान के ऐसे ही दो पोल वॉल्टर्स शुहॅई निशिडा और सुई ऑ की है, जिन्होंने अपनी दोस्ती के आगे ओलिंपिक को भी झुकने पर मजबूर कर दिया.

1936 के ओलिंपिक में हुआ था टाई

1936 के बर्लिन ओलिंपिक के पोल वॉल्टिंग इवेंट के फाइनल में 5 पोल वॉल्टर्स एक-दूसरे के आमने-सामने थे. फाइनल में 4.25 मीटर की ऊंचाई पार करने में अमेरिका के बिल ग्रेबर असफल रहे और बाहर हो गए. इसके बाद अमेरिका के ही अर्ल मीडॉस ने 4.35 मीटर की ऊंचाई को पार कर लिया, लेकिन बाकी के तीन खिलाड़ी इसे पार नहीं कर सके. ऐसे में गोल्ड मेडल पर मीडॉस ने कब्जा कर लिया. अब तीन खिलाड़ियों के बीच सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल की जंग शुरु हुई. 4.25 मीटर के बार को पार करने में बिल सेफ्टन असफल रहे. वो तीन प्रयासों में बार को क्लियर नहीं कर सके. दोनों जापानी पोल वॉल्टर्स शुहॅई निशिडा और सुई ऑ ने इसे पार कर लिया और दोनों के बीच सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल को लेकर मुकाबला टाई हो गया.

टाई-ब्रेकर खेलने से किया मना

दोनों जापानी खिलाड़ियों के सामने विकल्प था कि वो एक-दूसरे के खिलाफ टाई-ब्रेकर राउंड खेलकर सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल का फैसला करें. लेकिन दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ खेलने से मना कर दिया. दरअसल, दोनों एक दूसरे के पक्के दोस्त थे. शुहॅई निशिडा वासेडा यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे और सुई ऑ कीयो यूनिवर्सिटी के छात्र थे. दोनों दोस्त चाहते थे कि अवॉर्ड को दोनों में बांट दिया जाए.

ओलिंपिक एसोसिएशन ने ठुकराई मेडल बांटने की मांग

ओलिंपिक एसोसिएशन ने दोनों दोस्त की मेडल बांटने की मांग को नहीं माना और शुहॅई निशिडा को सिल्वर मेडल दे दिया क्योंकि उन्होंने पहले ही अटेंप्ट में 4.25 मीटर की ऊंचाई को पार कर लिया था. सुई को ब्रॉन्ज मेडल दिया गया.

दोनों ने मेडल को दो तुकड़ों में काटा

ओलिंपिक एसोसिएशन के इस फैसले से दोनों नाखुश हुए और मेडल पाने के बाद खुद ही उसे बांटने का फैसला किया. दोनों ने सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल को दो हिस्सों में कटवाया. उसके बाद ब्रॉन्ज मेडल के आधे हिस्से और सिल्वर मेडल के आधे हिस्से को आपस में जोड़ 2 नए मेडल बना डाले. इसे ‘द फ्रेंडशिप मेडल’ के नाम से जाना गया.

वासेडा यूनिवर्सिटी में रखा है द फ्रेंडशिप मेडल’

बर्लिन ओलिंपिक के बाद निशिडा ने खेलों की दुनिया में बने रहे, लेकिन सुई ने सेना से जुड़ने का फैसला किया. सुई 1942 में शहीद हो गए, तो निशिडा ने 1997 में दुनिया को अलविदा कहा. सुई का फ्रेंडशिप मेडल उनके परिवार के पास है, तो निशिडा का मेडल अब वासेडा यूनिवर्सिटी में दोस्ती की नायाब मिसाल के रुप में सभी को प्रेरित कर रहा है.

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Kishan Singh

खोज में हूं कि मैं कितना कम जानता हूं ।