जब बिना गोल्ड मेडल के खेला गया ओलंपिक, पैसों की कमी के चलते विजेताओं को करना पड़ा था संतोष

हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वो ओलंपिक खेलों में मेडल जीतकर अपने देश का नाम रोशन करे. खिलाड़ी पोडियम पर खड़े होकर गले में स्वर्ण पदक वाले लम्हें को जीने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं. लेकिन, अगर आपसे कहा जाए कि एक ओलंपिक ऐसा भी खेला गया, जहां पहला स्थान पाने वाले खिलाड़ियों को गोल्ड मेडल नहीं दिया गया, बल्कि, उन्हें सिल्वर मेडल देकर वापस भेज दिया गया, तो क्या आप इसपर विश्वास करेंगे? भले ही आप इसपर यकीन न करें, लेकिन साल 1896 में जब ओलंपिक खेल दोबारा से शुरू हुए, तो विजेताओं को सिर्फ रजत और कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था.

1896 में नहीं मिला गोल्ड मेडल

आज से करीब 1500 साल पहले रोमन किंग थियोडोसियस ने आलंपिक खेलों पर बैन लगा दिया था, जिसे 1896 में एथेंस में फिर से शुरू किया गया. दोबारा शुरू हुए ओलंपिक खेलों में विजेताओं को पदक देने की परंपरा अपनाई गई. हालांकि, 1896 में ओलंपिक खेलों में सिर्फ पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ियों को पदक दिए गए. विजेता को रजत पदक और उपविजेता को कांस्य पदक मिलता था. तीसरे स्थान पर रहे खिलाड़ी को खाली हाथ लौटना पड़ा था.

पदक के आगे कि हिस्से पर देवताओं के पिता ज्यूस की तस्वीर हुआ करती थी, तो पिछले हिस्से में एक्रोपोलिस की तस्वीर बनी थी.

क्यों नहीं मिलता था गोल्ड मेडल

दरअसल, पहले ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल नहीं दिए जाने के पीछे की वजह महंगाई थी. एथेंस में उस समय सोना काफी महंगा था इसलिए गोल्ड मेडल नहीं दिया गया था. यही, वजह थी कि जब अमेरिका के एथलीट जेम्स कोनोली आधुनिक ओलंपिक खेलों  के पहले चैंपियन बने, तो उन्हें सिल्वर मेडल से संतुष्ट होना पड़ा था.  

 1904 में शुरू हुई गोल्ड मेडल की प्रथा

आज जिस ‘3 मेडल फॉर्मेट’ को हम पहचानते हैं, उसकी शुरूआत 1904 के सेंट लुइस ओलंपिक खेलों से हुई, जब विजेताओं को पहली बार गोल्ड मेडल से नवाजा गया. इसके बाद से आज तक के सभी ओलंपिक खेलों में यही प्रथा चली आ रही है. इसके अलावा 1948 ओलंपिक खेलों से चौथे, पांचवें और छठे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ियों को भी डिप्लोमा दिया जाने लगा. आगे चलकर 1984 में सातवें और आठवें स्थान पर रहे खिलाड़ियों को डिप्लोमा देने की शुरूआत की गई.

 ‘चांदी’ वाला गोल्ड मेडल

अगर आपको लगता है कि जो गोल्ड मेडल खिलाड़ियों को मिलता है, वो पूरी तरह सोने से बना होता है, तो आप गलत हैं. दरअसल, 1912 के स्टॉकहोम खेलों में आखिरी बार ‘गोल्ड मेडल’ पूरी तरह से सोने से बनाए गए थे. उसके बाद से ही स्वर्ण पदकों पर सोने की सिर्फ परत चढ़ाई जाती है. दरअसल, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के दिशा-निर्देशों के अनुसार, गोल्ड मेडल में कम से कम 6 ग्राम सोना होना चाहिए. 1912 के बाद से गोल्ड मेडल मे चांदी का भारी मात्रा में इस्तेमाल किया जाने लगा.  

Write a comment ...

Write a comment ...

Kishan Singh

खोज में हूं कि मैं कितना कम जानता हूं ।